Monday, 29 January 2018

Poem #1

*हवा लगी पश्चिम की ,
सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।

*ईस्वी सन तो याद रहा ,
पर अपना संवत्सर भूल गए ।।

🌹
*चारों तरफ नए साल का ,
ऐसा मचा है हो-हल्ला ।

*बेगानी शादी में नाचे ,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।

🌹
*धरती ठिठुर रही सर्दी से ,
घना कुहासा छाया है ।

*कैसा ये नववर्ष है ,
जिससे सूरज भी शरमाया है ।।

🌹
*सूनी है पेड़ों की डालें ,
फूल नहीं हैं उपवन में ।

*पर्वत ढके बर्फ से सारे ,
रंग कहां है जीवन में ।।

🌹
*बाट जोह रही सारी प्रकृति ,
 आतुरता से फागुन का ।

*जैसे रस्ता देख रही हो ,
सजनी अपने साजन का ।।

🌹
*अभी ना उल्लासित हो इतने ,
 आई अभी बहार नहीं ।

*हम अपना नववर्ष मनाएंगे ,
न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।

🌹
*लिए बहारें आँचल में ,
जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।

*फूलों का श्रृंगार करके ,
धरती दुल्हन बन जाएगी ।।

🌹
*मौसम बड़ा सुहाना होगा ,
दिल सबके खिल जाएँगे ।

*झूमेंगी फसलें खेतों में ,
हम गीत खुशी के गाएँगे ।।

🌹
*उठो खुद को पहचानो ,
यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।

*चिन्ह गुलामी के कंधों पर ,
 कबतक ढोते रहोगे तुम ।।

🌹
*अपनी समृद्ध परंपराओं का ,
 आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।

*आर्यवृत के वासी हैं हम ,
अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।

#pRem...


No comments:

Post a Comment

Three Quotes 🤗🙋👌✌

व्यापार में ~ *" घाटा "* का .., लड़ाई में  ~ *" चांटा "* का .., रईसों में ~~*" टाटा "* का .., जूत्तों में ...