*हवा लगी पश्चिम की ,
सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।
*ईस्वी सन तो याद रहा ,
पर अपना संवत्सर भूल गए ।।
🌹
*चारों तरफ नए साल का ,
ऐसा मचा है हो-हल्ला ।
*बेगानी शादी में नाचे ,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।
🌹
*धरती ठिठुर रही सर्दी से ,
घना कुहासा छाया है ।
*कैसा ये नववर्ष है ,
जिससे सूरज भी शरमाया है ।।
🌹
*सूनी है पेड़ों की डालें ,
फूल नहीं हैं उपवन में ।
*पर्वत ढके बर्फ से सारे ,
रंग कहां है जीवन में ।।
🌹
*बाट जोह रही सारी प्रकृति ,
आतुरता से फागुन का ।
*जैसे रस्ता देख रही हो ,
सजनी अपने साजन का ।।
🌹
*अभी ना उल्लासित हो इतने ,
आई अभी बहार नहीं ।
*हम अपना नववर्ष मनाएंगे ,
न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।
🌹
*लिए बहारें आँचल में ,
जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।
*फूलों का श्रृंगार करके ,
धरती दुल्हन बन जाएगी ।।
🌹
*मौसम बड़ा सुहाना होगा ,
दिल सबके खिल जाएँगे ।
*झूमेंगी फसलें खेतों में ,
हम गीत खुशी के गाएँगे ।।
🌹
*उठो खुद को पहचानो ,
यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।
*चिन्ह गुलामी के कंधों पर ,
कबतक ढोते रहोगे तुम ।।
🌹
*अपनी समृद्ध परंपराओं का ,
आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।
*आर्यवृत के वासी हैं हम ,
अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।
#pRem...
सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।
*ईस्वी सन तो याद रहा ,
पर अपना संवत्सर भूल गए ।।
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*चारों तरफ नए साल का ,
ऐसा मचा है हो-हल्ला ।
*बेगानी शादी में नाचे ,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।
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*धरती ठिठुर रही सर्दी से ,
घना कुहासा छाया है ।
*कैसा ये नववर्ष है ,
जिससे सूरज भी शरमाया है ।।
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*सूनी है पेड़ों की डालें ,
फूल नहीं हैं उपवन में ।
*पर्वत ढके बर्फ से सारे ,
रंग कहां है जीवन में ।।
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*बाट जोह रही सारी प्रकृति ,
आतुरता से फागुन का ।
*जैसे रस्ता देख रही हो ,
सजनी अपने साजन का ।।
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*अभी ना उल्लासित हो इतने ,
आई अभी बहार नहीं ।
*हम अपना नववर्ष मनाएंगे ,
न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।
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*लिए बहारें आँचल में ,
जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।
*फूलों का श्रृंगार करके ,
धरती दुल्हन बन जाएगी ।।
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*मौसम बड़ा सुहाना होगा ,
दिल सबके खिल जाएँगे ।
*झूमेंगी फसलें खेतों में ,
हम गीत खुशी के गाएँगे ।।
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*उठो खुद को पहचानो ,
यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।
*चिन्ह गुलामी के कंधों पर ,
कबतक ढोते रहोगे तुम ।।
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*अपनी समृद्ध परंपराओं का ,
आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।
*आर्यवृत के वासी हैं हम ,
अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।
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